माहावर:भारतीय संस्कृति,रीति-रिवाजों
![]() |
माहावर-माहावर,भारतीय संस्कृति,रीति-रिवाजों |
आँगन में एक अलमारी थी जिसमें एक पीतल की कटोरी में महावर घुला रहता था. बचपन से ही यह कटोरी हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शामिल थी. उस समय लगता था कि क्यों यह कटोरी हमेशा ऐसे ही रखी रहती? लेकिन माँ के जीवन का अहम हिस्सा थी वह कटोरी.
जैसे ही कोई त्यौहार आता माँ उसमें थोड़ा पानी डालती थोड़ा सा महावर का रंग डालती और अपने पैरों में महावर लगा लेतीं. जब ये कटोरी सूखी रहती तो लगता था जैसे कि उदास है लेकिन जैसे ही पानी और रंग घुलता , इस कटोरी की तो रौनक़ देखने वाली होती थी.
हर दूसरे-चौथे दिन हमारे यहाँ व्रत,त्यौहार या उत्सव होता ही है. घर में आने वालीं ज़्यादातर महिलायें चाहे वह रिश्तेदार हों, माँ को मिलने वाली हों या घर पर आने वाली कामवलियां ही क्यों न हो, सब के पैरों में महावर ज़्यादातर शोभा पाता था.
घर में कोई उत्सव हो पूरा आँगन महिलाओं से भर जाता था. जैसे ही कोई महावर की कटोरी लेकर आगे बढ़ता. सभी महिलाओं में होढ़ सी लग जाती थी. सबके पैर खुद-ब-खुद आगे बढ़ जाते थे. ऐसा लगता था जैसे वसंत में कचनार दहक रहा हो. महावर लगने के समय ख़ूब ठिठोली होती थी.
महावर लगाते समय महिलायें अपने पैर को महावर से अलग-अलग डिज़ाइन बना कर सजाती थीं.
बिछिए और पायल का साथ पाकर महावर ख़ूब दमकता था. साड़ियाँ ख़राब न हों इसलिए कितनी देर तक सभी महिलायें बैठी रहतीं ताकि महावर सूख जाए.
अब जब महावर की कटोरी किसी घर में दिखाई नहीं देती तब उस कटोरी की ख़ूब याद आती है.
"भारतीय संस्कृति" में महिलाओं के लिए बताये गये सोलह शृंगारों में से एक शृंगार, महावर भी है.
लेकिन कुछ तो है हमारे इन रीति-रिवाजों में उससे जुड़े रहें.
कृपया ध्यान दें : अगर ऊपर दी गयी जानकारी में कोई भी गलती हो तो जरूर बताये। और उन गलतियों के लिए माफ़ कर देना।