1)मां शैलपुत्री, माँ दुर्गा के 9 रूप
मां शैलपुत्री, माँ दुर्गा के 9 रूप |
पहला स्वरूप -माता शैलपुत्री
महत्व : नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश पूजा के साथ ही मां दुर्गा के पहले स्वरुप 'शैलपुत्री जी' का पूजन किया जाता है। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं। मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरुप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
पौराणिक कथा : माता शैलपुत्री को शिखर यानि हिमालय पर्वत की बेटी के रूप में जाना जाता है। इन्हें पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता है।भागवत पुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन कर सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा लेकिन भगवान शिव और पुत्री सती को नहीं बुलाया। अपने पति भगवान शिव के अपमान से नाराज हो कर,उन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यज्ञ में अपनी आहूति देकर आत्मदाह कर लिया था। देवी सती ने पर्वतराज हिमालय के घर में देवी पार्वती या माता शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त किया।
पूजन मंत्र: वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
बीज मंत्र: ह्रीं शिवायै नम:।
पूजन विधि: नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गंगा जल का छिड़काव करें और ऊपर केसर से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। अब चौकी पर मां शैलपुत्री या माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। माता को सफेद वस्त्र और सफेद फूल चढ़ाएं। साथ ही सफेद रंग की मिठाइयों का भोग लगाएं, माता के चरणों में गाय का घी अर्पित करें। तत्पश्चात मां शैलपुत्री के मंत्रों का 108 बार जाप करें और माता की आरती का पाठ करें।
माता का प्रिय रंग: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री को सफेद रंग पसंद है।